बात कुछ और थी

दूसरों पे मड़ते रहे गलतियाँ हम,

मगर समझने को आये,

जब जिंदगी अपनी!

तो मालूम पड़ा,की बात कुछ और थी।

अय्याशी,सुकून,खुशी,

इन सब से कभी,गहरी दोस्ती थी हमारी

आँख खुली जब अपनी,

तो मालूम पड़ा,की बात कुछ और थी।

कुमार अभिनव

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